हिंदी में नुक्ते का प्रयोग
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May 12, 2013

अभी हाल में मेरे एक मित्र ने मुझसे "आवाज", "कानून", "कागज", "दस्तावेज", "जमीन" आदि अनेक शब्दों में नुक्ते के प्रयोग के बारे में पूछा। क्या इन शब्दों को नुक्ते के बिना लिखना सही है या नुक्ते के साथ। उन्�... See more
अभी हाल में मेरे एक मित्र ने मुझसे "आवाज", "कानून", "कागज", "दस्तावेज", "जमीन" आदि अनेक शब्दों में नुक्ते के प्रयोग के बारे में पूछा। क्या इन शब्दों को नुक्ते के बिना लिखना सही है या नुक्ते के साथ। उन्होंने यह भी कहा कि आजकल अनेक जगह इन शब्दों को नुक्ते के बिना लिखा जाता है, और अन्य अनेक स्थलों में नुक्ते के साथ।

इस प्रश्न का उत्तर देना मेरे लिए कठिन साबित हुआ। किशोरीदास वाजपेयी (हिंदी शब्दानुशासन, नागरी प्रचारिणी सभा) जैसे व्याकरण के विद्वान इन शब्दों में नुक्ता लगाने के पक्ष में नहीं हैं। उनका कहना है कि ये सब शब्द अब हिंदी के अपने हो गए हैं और हिंदी भाषी इन शब्दों का उच्चारण ऐसे ही करते हैं जैसे उनमें नुक्ता नहीं लगा हो। बहुत कम लोगों को उर्दू के नुक्ते वाले सही उच्चारण का ज्ञान है।

दूसरी ओर, आजकल उर्दू का बहुत सा साहित्य अब देवनागरी लिपि में भी आने लगा है और यह रुझान आगे और मजबूत ही होनेवाला है। हिंदी और उर्दू एक सामान्य लिपि (देवनागरी) के उपयोग की तरफ बढ़ रहे हैं। ऐसे में उर्दू के अनेक शब्द हिंदी में अधिक दिखाई देने लगेंगे और इन्हें नुक्ते के साथ लिखने की प्रवृत्ति भी बढ़ती जाएगी। जो लेखक, पत्रकार, अनुवादक आदि उर्दू परिवेश से हिंदी में आए हैं, वे नुक्ते का प्रयोग करना पसंद करेंगे।

एक अन्य बात भी ध्यान में रखने की है। दो-तीन दशक पहले की संस्कृतनिष्ठ शैली अब हिंदी में कम देखने को मिल रही है और पत्र-पत्रिकाओं, टीवी आदि में अधिक सरल, आम-बोलचाल की, हिंदुस्तानी शैली अधिक नज़र आ रही है। यह भी नुक्ते के प्रयोग का समर्थन ही करेगी।

इस संबंध में मैं आपकी राय भी जानना चाहूँगा। क्या आप नुक्ते के प्रयोग के पक्ष में हैं या नहीं।
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Soumitra Dey
 
Amar Nath
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नुक्ते के मुद्दे पर मतैक्य का अभाव May 12, 2013

आपने जिस प्रसंग का उल्लेख किया है, लम्बे समय से हिंदी से जुड़े लोगों के बीच विमर्श का विषय रहा है। और जहाँ तक मेरी जानकारी है, प्रयोक्ता दो हिस्से में बंटे हुए हैं, एक तबका नुक्ते का पक्षधर है तो ... See more
आपने जिस प्रसंग का उल्लेख किया है, लम्बे समय से हिंदी से जुड़े लोगों के बीच विमर्श का विषय रहा है। और जहाँ तक मेरी जानकारी है, प्रयोक्ता दो हिस्से में बंटे हुए हैं, एक तबका नुक्ते का पक्षधर है तो दूसरा नहीं यानी मतैक्य का अभाव है। तथापि, इस विषय पर केंद्रीय हिंदी निदेशालय ने ''देवनागरी लिपि और हिंदी वर्तनी का मानकीकरण" नामक पुस्तिका में कुछ इस तरह कहा है‌----,

3.14 विदेशी ध्वनियाँ

3.14.1 उर्दू शब्द

उर्दू से आए अरबी-फ़ारसी मूलक वे शब्द जो हिंदी के अंग बन चुके हैं और जिनकी विदेशी ध्वनियों का हिंदी ध्वनियों में रूपांतर हो चुका है, हिंदी रूप में ही स्वीकार किए जा सकते हैं। जैसे, कलम, किला, दाग आदि (क़लम, कि़ला, दाग़ नहीं)। पर जहाँ उनका शुद्ध विदेशी रूप में प्रयोग अभीष्ट हो अथवा उच्चारणगत भेद बताना आवश्यक हो, वहाँ उनके हिंदी में प्रचलित रूपों में यथास्थान नुक्ते लगाए जाएँ। जैसे, खाना - ख़ाना, राज - राज़, फन - हाइफ़न आदि।
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नुक्ते के संबंध में मेरी नीति May 12, 2013

अमर नाथ जी आपने बिलकुल सही कहा। इस विषय पर मतैक्य नहीं है। पर हम अनुवादकों को अनुवाद करते समय या किसी दूसरे अनुवादक के अनुवाद का पुनरीक्षण करते समय नुक्ते के संबंध कोई-न-कोई निर्णय लेना ही पड़�... See more
अमर नाथ जी आपने बिलकुल सही कहा। इस विषय पर मतैक्य नहीं है। पर हम अनुवादकों को अनुवाद करते समय या किसी दूसरे अनुवादक के अनुवाद का पुनरीक्षण करते समय नुक्ते के संबंध कोई-न-कोई निर्णय लेना ही पड़ता है। मैं जानना चाहूँगा कि आपका इस संबंध में क्या निर्णय रहता है।

नुक्ते के संबंध में मैं स्वयं यह नीति अपनाता हूँ -

1. यदि क्लाइंट का इस संबंध में कोई नीति हो, तो मैं उसका पालन करता हूँ। यदि क्लाइंट ने कोई स्टाइल शीट तैयार की हो और उसमें नुक्ते के विषय में कोई नीति स्पष्ट की गई हो, तो मेरा काम आासान हो जाता है - मुझे बस उसका पालन करना होता है।

2. यदि क्लाइंट का इस संबंध में कोई नीति नहीं हो, तो मैं क्लाइंट से पूछता हूँ कि क्या इस परियोजना में पहले कोई हिंदी अनुवाद कराया गया है या नहीं, और यदि कराया गया हो, तो उसे देखता हूँ कि पहले के अनुवाद में नुक्ते के संबंध में क्या किया गया है। बहुत बार पहले के अनुवाद में नुक्ते के संबंध में कोई स्पष्ट नीति नज़र नहीं आती है, विशेषकर तब जब पहले का अनुवाद कई अनुवादकों ने मिलकर किया हो और अलग-अलग अनुवादक ने नुक्ते को लेकर अलग-अलग नीति अपनाई हो। ऐसे मामलों में मैं यह पता लगाने की कोशिश करता हूँ कि अधिकांश अनुवादकों ने क्या किया है और उसी का पालन करता हूँ।

यदि कोई भी स्पष्ट रुझान नहीं नज़र आ रहा हो, तो मैं उन शब्दों में नुक्ता लगाता हूँ जिनके संबंध में मेरी राय में हिंदी में आम राय बन चुकी है। यह फिर भी एक विवादास्पद विषय है क्योंकि दरअसल हिंदी में कोई आम राय है ही नहीं, और नुक्ता लगाते समय लेखक यह ध्यान में नहीं रखते हैं कि जिन शब्दों में वे नुक्ता लगा रहे हैं, उन्हें उर्दू में कैसे लिखा जाता है, अधिकांश हिंदी लेखकों को उर्दू लिपि का ज्ञान होता भी नहीं है कि वे ऊर्दू वर्तनी के अनुसार नुक्ता लगाएँ। आम तौर पर केवल ज और फ में ही नुक्ता लगाया जाता है, और ग, क, ख, में नहीं लगाया जाता है।

3. यदि नुक्ते के संबंध में क्लाइंट की कोई नीति न हो, तो मैं अपनी समझ के अनुसार हिंदी में जिन शब्दों में आम तौर पर नुक्ता लगाया जाता है, उनमें नुक्ता लगा देता हूँ।

आप इस संबंध में क्या करते हैं?

[2013-05-12 13:42 GMT पर संपादन हुआ]
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Vishal Kumar
 
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नुक्ते का प्रयोग केवल क्लाइंट की मांग May 13, 2013

बालाजी, आपकी बातों से शत-प्रतिशत सहमत हूँ।

जहाँ तक मेरी बात है, मैं हिंदी में नुक्ते का प्रयोग नहीं करता हूँ और ना ही इसका समर्थक हूँ। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि सरकारी निर्देश ऐसे ही हैं और द�
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बालाजी, आपकी बातों से शत-प्रतिशत सहमत हूँ।

जहाँ तक मेरी बात है, मैं हिंदी में नुक्ते का प्रयोग नहीं करता हूँ और ना ही इसका समर्थक हूँ। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि सरकारी निर्देश ऐसे ही हैं और दक्षिण भारत में रहने की वजह से मेरी कोशिश हमेशा हिंदी को आसान और समझने लायक बनाने की होती है। इसके बावजूद, जैसा आपने जिक्र किया, सबकुछ क्लाइंट की अपेक्षा पर निर्भर करता है। अगर उन्हें नुक्ते वाली हिंदी चाहिए तो इसका पालन करना पड़ता है।

मेरा अनुभव इस मामले में इस तरह से मजेदार रहा है कि जब नुक्ता लगाता हूँ तो संपादक/पुनरीक्षण करने वाले सज्जन उसे निकालना पसंद करते हैं और अगर नहीं लगाता हूँ तो उसे लगा दिया जाता है। मुझे लगता है, अन्य साथियों के अनुभव भी कुछ ऐसे हो सकते हैं।

अगर मैं संपादक/पुनरीक्षण करने वाली भूमिका में होता हूँ तो नुक्ते से परहेज करता हूँ। और हाँ, अभी तक एक को छोड़कर मुझे कोई ऐसा क्लाइंट नहीं मिला है जिनके पास नुक्ते के प्रयोग को लेकर कोई स्पष्ट नीति हो।

व्यावहारिक रूप से देखा जाए तो केंद्रीय हिंदी निदेशालय का निर्देश सही और उपयुक्त है।

[Edited at 2013-05-13 14:05 GMT]
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Virender Singh
 
Ashutosh Mitra
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अमरनाथ जी से कुछ हद तक सहमत... May 13, 2013

Amar Nath wrote:

इसके बावजूद, जैसा आपने जिक्र किया, सबकुछ क्लाइंट की अपेक्षा पर निर्भर करता है। अगर उन्हें नुक्ते वाली हिंदी चाहिए तो इसका पालन करना पड़ता है।

मेरा अनुभव इस मामले में इस तरह से मजेदार रहा है कि जब नुक्ता लगाता हूँ तो संपादक/पुनरीक्षण करने वाले सज्जन उसे निकालना पसंद करते हैं और अगर नहीं लगाता हूँ तो उसे लगा दिया जाता है। मुझे लगता है, अन्य साथियों के अनुभव भी कुछ ऐसे हो सकते हैं।

अगर मैं संपादक/पुनरीक्षण करने वाली भूमिका में होता हूँ तो नुक्ते से परहेज करता हूँ। और हाँ, अभी तक एक को छोड़कर मुझे कोई ऐसा क्लाइंट नहीं मिला है जिनके पास नुक्ते के प्रयोग को लेकर कोई स्पष्ट नीति हो।


या तो क्लाइंट के निर्देश हों अन्यथा जो शब्द अब नुक्ते के साथ आम हो गये हैं उनका प्रयोग करता हूँ।

[Edited at 2013-05-13 14:06 GMT]


 
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नुक्ता और अंग्रेजी का f और z उच्चारण May 13, 2013

अमर नाथ जी, और आशुतोष जी, नुक्ता न लगाने की नीति उर्दू के शब्दों के संबंध में तो कुछ-कुछ समझ में आती है, पर आजकल इसे अंग्रेजी के f और z उच्चारण को दिखाने के लिए भी प्रयोग किया जा रहा है, विशेषकर कंप्य... See more
अमर नाथ जी, और आशुतोष जी, नुक्ता न लगाने की नीति उर्दू के शब्दों के संबंध में तो कुछ-कुछ समझ में आती है, पर आजकल इसे अंग्रेजी के f और z उच्चारण को दिखाने के लिए भी प्रयोग किया जा रहा है, विशेषकर कंप्यूटर, विज्ञान, इंजीनियरी आदि से संबंधित लेखन में। उदाहरण के लिए फ़ाइल, फ़ोरम, ज़ू, ज़ेनॉन, ज़ेरॉक्स आदि में।

इससे मामला कुछ और जटिल हो जाता है। आजकल अंग्रेजी से हिंदी में शब्दों की भर्ती बड़े पैमाने पर हो रही है, विशेषकर विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में। यहाँ ऐसे भी बहुत से शब्द हिंदी में आ रहे हैं जिनमें यह f और z वाली ध्वनि होती है।

अमर नाथ जी, आपने केंद्रीय हिंदी निदेशालय के एक नियम का उल्लेख किया था जिसमें वे नुक्ते का प्रयोग न करने की सलाह देते हैं, पर यदि आप केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा ही प्रकाशित बृहद वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली देखें, तो उसमें नुक्ते का काफी प्रयोग मिलता है।

इस तरह नियम तो हैं, पर नियमों का पालन नहीं हो रहा है। और भाषा में प्रवृत्ति ही सबसे महत्वपूर्ण होती है।

मैंने यह पोस्ट इसीलिए आरंभ किया था कि आप लोगों की राय जानूँ कि आधुनिक हिंदी में नुक्ते के संबंध में प्रमुख प्रवृत्ति क्या है। मुझे तो लग रहा है कि हिंदी नुक्ते के प्रयोग की ओर बढ़ रही है, हालाँकि पहले के व्याकरणाचार्यों ने नुक्ते के विरुद्ध फतवा निकाला हुआ है।

इस संबंध में मेरा एक विचार और है, जिसका भी मैं उल्लेख करना चाहूँगा। नु्क्ते का विषय भारत विभाजन की राजनीति और अंग्रेजों की बाँटों और राज करो की नीति से भी उलझा हुआ जान पड़ता है। भारत विभाजन के समय उर्दू को मुसलमानों के साथ और हिंदी को हिंदुओं के साथ जोड़ दिया गया था और इन दोनों भाषाओं को, जिनके संबंध में तब तक की आम राय यही थी कि ये दोनों एक ही भाषा के दो साहित्यिक रूप हैं, यथा-संभव एक-दूसरे से अलग बनाने का प्रयास ज़ोरों से किया गया था। इसमें अंग्रेजों की कूटनीति भी थी क्योंकि यह स्वाधीनता संग्राम को कमज़ोर करता था। इसके लिए उर्दू में अरबी-फारसी के शब्द ठूँसे गए और हिंदी में संस्कृत के।

मुझे लगता है कि किशोरीदास वाजपेयी और उनकी पीढ़ी के लोगों ने नुक्ते के विरोध में इसी संदर्भ में और इसी राजनीति से प्रभावित होकर वक्तव्य दिया था।

उसके बाद से हिंदी अपनी चाल से आगे बढ़ी और सरलता की अपनी मूल प्रवृत्ति की पुनःप्राप्ति में जुट गई, जो प्रवृत्ति इस राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण कुछ-कुछ कुंठित हो गई थी। उसने कठिन संस्कृत-निष्ठ शब्दावली के साथ-साथ सरल हिंदुस्तानी शब्दावली को भी प्रेम से अपनाया।

दूसरी ओर, उर्दू के लिए भी देवनागरी लिपि का अधिकाधिक प्रयोग होने लगा, और जब उर्दू देवनागरी में लिखी जाती है, तो नुक्ता तो लगता ही है, पर देवनागरी लिपि में लिखी उर्दू को हिंदी में अलग पहचानना कठिन है, विशेषकर तब जब उसमें कठिन अरबी-फारसी शब्दावली नहीं रखी गई हो। तो लोग इसे हिंदी ही समझने लगे, जो ठीक भी था, और इसकी देखा-देखी, नुक्ते का भी प्रयोग करने लगे।

पर यह प्रवृत्ति सर्वमान्य नहीं बन पाई है क्योंकि अब भी नुक्ते के विरुद्ध पहले जारी किए गए फतवों का ज़ोर मिटा नहीं है और लोग उन्हें भी मानते चल रहे हैं। नतीजतन, आजकल हिंदी में ये दोनों ही प्रवृत्तियाँ देखने को मिल रही हैं।

मैंने स्कूल की पाठ्य-पुस्तकों को भी इस दृष्टि से देखा-परखा है और उनमें भी ये दोनों ही प्रवृत्तियाँ दिखाई देती हैं। बहुत छोटी कक्षा की पाठ्य-पुस्तकों में भी यहाँ-वहाँ नुक्ते का प्रयोग दिख जाता है।

मुझे लगता है जब तक किशोरीदास वाजपेयी जैसे सम्मानीय और सर्वमान्य वैयाकरण इस विषय की छानबीन करके कोई नई नीति निश्चित न कर दें और लोग उसे मानने न लगें, तब तक नुक्ते को लेकर यह दुविधात्मक स्थिति बनी रहेगी, और हम अनुवादकों को इससे यथा-समझ निपटते जाना होगा।

इसमें कोषकार भी योगदान कर सकते हैं। वे हिंदी के ऐसे शब्दों की सूची तैयार कर सकते हैं जो हिंदी के अपने शब्द मान लिए गए हैं और जिनमें नुक्ता नहीं लगाया जाना चाहिए और यदि लगाया जाए, तो इसे गलत माना जाएगा। और इसी तरह ऐसे शब्दों की सूची भी बनानी चाहिए जिनमें नुक्ता लगाना अनिवार्य है और न लगाने पर वर्तनी दोष माना जाएगा। यह काम केंद्रीय हिंदी निदेशालय कर सकता है। पर वह करेगा या नहीं यह बिलकुल दूसरी बात है!


[2013-05-13 15:00 GMT पर संपादन हुआ]
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Kamta Prasad
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जरा संभल कर Apr 23, 2014

मैं बहुत शिद्दत के साथ उर्दू सीखने की कोशिशों में लगा हुआ हूं। लगातार टाइप कर रहा हूं ताकि सही वर्तनी के साथ उर्दू लिखना सीख सकूं। आपको जब इस बात का ज्ञान होगा कि कौन सा शब्द उर्दू का है और उसकी सही स्पेलिंग क्या है तभी आप सही जगह पर नुक्ता लगा पाएंगे।
नुक्ते का उपयोग अगर करना है तो उर्दू सीखें वरना नुक्ते को मारें गोली।


 
Yogesh Tiwari
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Nuqta Aug 4, 2018

This is my personal opinion based on one fundamental principle of Hindi/Sanskrit. Devnagri is written as it is spoken. With an years of background in subtitling and dubbing, I feel, it is imperative for linguists to retain the purity of any term or word. If linguists do not do it, then who will do it? Irrespective of what regulations are made, all languages are live languages. So in that sense both versions, the commonly used and the pure ones become acceptable. But that is for the general usage... See more
This is my personal opinion based on one fundamental principle of Hindi/Sanskrit. Devnagri is written as it is spoken. With an years of background in subtitling and dubbing, I feel, it is imperative for linguists to retain the purity of any term or word. If linguists do not do it, then who will do it? Irrespective of what regulations are made, all languages are live languages. So in that sense both versions, the commonly used and the pure ones become acceptable. But that is for the general usage. From the perspective of linguists, it is imperative that we use the purest form, irrespective of the general usage. It is also because, linguists are the ones who love the language and it is love of something that makes it thrive. Now with auto-correct option, it is very easy to create a list of all such words (there aren't many which are popular in Hindustani - hardly 1000 of them and I already did that). Once the list is created, one doesn't need to type the nuqtas every time one types. The system auto corrects these words. Even while translating and reviewing, maintaining this policy is advisable and clients can be advised on this count, irrespective of how others are using it. Such corrections can be made while giving a comment that they are preferential or subjective in nature. This will neither offend the client nor the translator and at the same time, other translators will also pick them up. Even from grammatical point of view these terms with nuqta are considered to be additional consonants, which means they are different sounds. So going back to the starting comment, Devnagri is written as it is spoken and when there is a difference in sound it needs to be captured. When I refer to 'written as it is spoken' I do not mean how common public speaks it, what I mean is how it originally sounds from 'additional consonant perspective'. If the original sound has a difference then it needs to be faithfully recorded, especially when the tools for doing the same are available.


[Edited at 2018-08-04 17:41 GMT]
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